आचार्य श्री विश्वरत्न सागरजी महाराज जी मा. सा. का जीवन परिचय
जनजन कि आस्था एवं श्रद्धा के केंद्र, मालव भूषण महान तपस्वी आचार्य भगवंत श्री नवरत्न सागर सुरीश्वरजी महाराजा के शिष्यरत्न युवा हृदय सम्राट आचार्य भगवंत "श्री विश्वरत्न सागर सुरीश्वरजी महाराज साहेब"
जन जन की आस्था के केन्द्र परम पुज्य आचार्य श्री नवरत्न सागर जी महाराज के शिष्य आचार आचार्य श्री विश्वरत्न सागर जी महाराज का चतुर्मासिक मंगल प्रवेश 17 जुलाइ 2016 को शंखेश्वर जी मे ऐतिहासिक रूप से संपन्न हुआ| अलग अलग विशेष झाँकियो द्वारा महाराज का स्वागत किया गया|
जीवन दर्शन
भारतीय तत्व मनीषा में जैन मनीषियों का गोरवपूर्ण स्थान है, जहा लोग मात्र विचारक होते है वही जैन श्रमण संस्कर्ति में विचारक के साथ अचारक होते है, विचारशीलता मात्र मस्तिष्क की उन्नति, विकास का कारण होती है परंतु विचारो के साथ अचरणशीलता उन्नति का कारण होती है। आचार विचार देतवाद की संगमस्थली श्रमणाचार है । श्रमण संघ के द्वारा दिए गए आचार और विचारो से लोगो ने जगत में जीने की कला को सिखा है । आचार की पलना में तीर्थकर परमात्मा के द्वारा दिए गए प्रारूपित शासन सर्वोपरि है जो आदेश परमात्मा के द्वारा निर्देशित, प्रसारित किया गया है उसे ही श्रमण भगवंत पालन करते है । परमात्मा के द्वारा दिए गए निर्देशो का परिपालन विधिपूर्वक करने के लिए साधु संघ में विशिष्ट पद होते है, जैसे मुनि, गणी,पन्यास, । उपाध्याय और आचार्य गणिवर्य श्री विश्वरत्न सागर जी के जीवन में प्रबल देवयोग आया और गुरुदेव आचार्य श्री ने विश्वरत्न में ढाल कर उन्हें जैन जगत को अपने शिष्य के रूप में उपलब्ध करा दिया। समाचीन गुरु के प्राप्त होते ही उनके अंतः करण में यहाँ सूत्र घोषित होने लगा, गुरुवो भवन्ति शरणम। जगत में शरणभुत गुरु ही होते है।
गणिवर्ग श्री विश्वरत्न सागर की दृष्टि में युवा पीढ़ी हमेशा से रही है, वे जानते है इनमे गजब की कार्य सहमत होती है अगर इसका उपयोग ठीक तरह से कर लिया जय तो यहाँ धर्म और संस्कर्ति दोनों के लिए उपयोगी होने के साथ समाज विकास में सहयोगी हो सकते है । युवा शिविर के आयोजन के उनका उद्देश्य यही रहता है की समाज के युवा अपनी बौद्धिक भावनात्मक और शारीरिक शक्तियों को विकसित करेगे और अपने जीवन में सामाजिक उत्तरदायित्वों के विवेक तथा निस्वार्थ सेवा के और सर्वमान्य हित के निमित समर्पण की भावना के पोषण करे । उनकी यहाँ भावना रहती है की युवाओ और भौतिक लिप्सा की आखो में मलहम पट्टी करने के साथ-साथ युवाओ को उनके अस्तित्व का बोध करते हुए उन्हें सही दिशा प्रदान की जाये। मेने तो गणिवर्यश्री को बहुत निकट से परखा देखा जाना है । घंटो वार्तालाप किया है, बहिरंग ही नहीं अंतरंग तक उन्हें पहचान है। एक और वे अंतरमुखी होकर मोक्ष मार्ग पर आरूढ़ है तो दूसरी और सवेंदनशील भावुक करुणावान स्वभाव के संत होने से व्यक्ति और समाज की पीड़ा से व्यथित होकर जनहित की भावना की भावना से बहिर्मुखी हो जाते है। s
मुनिचर्या के पालन का ध्यान रखते हुए प्रवचन लेखन, धर्म प्रभावना महोत्सव का प्रबदन करने के लिए समय निकाल लेना शायद आप जैसे विश्वरत्न के ही वस् की बात है। राष्ट्रीय, राजनितिक ज्वलंत समस्याओ के प्रति उनकी जागरूकता समाधान तक का चिंतन प्रधान करती है। आध्यत्म का अनंत प्रकाश, समता की वसुंधरा आपके जीवन को उज्ज्वलता प्रदान करेगी। अपने कद वर्ण, संत लालिमा से प्रदीप्त प्रकाश, पारदर्शी नयन, मनोहारी मुस्कान, आकर्षण मुक्त आपका बाह्य व्यक्तित्व मधुरता को अपनी और खीच लेता है। आत्मीय स्नेह वात्सल्य के साथ युवा संस्कार शिविरों के माध्यम से बहाव करने के साथ वे विप्रितकाल में संस्कार युक्त युवा पीढ़ी के निर्माण में सक्रियता से कार्य का रहे है।
गणिवर्य श्री विश्वरत्न सागरजी म. सा. के ह्रदय में गुरु के प्रति विनय भाव एवं शिष्यो के प्रति वात्सल्य एवं करुणा भाव तथा समाज के प्रति सही मार्गदर्शक लक्ष्य है। देवशास्त्र और गुरु के प्रति परमार्ग श्रद्धा को देख अनेक युवा भक्तो ने उनके अंतर पर आगे बढ़ाया है विश्व कल्याणकारी जिनशासन सवर्धक अनुशासन के पथानुगामी श्री विश्वरत्नसागर जी म. सा. ने श्रुत सेवा ज्ञान के प्रति रूचि होने से ही निरंतर आगमोद्धारक जैन मसाइल ले विकास के प्रति वे संचेत रहे है, आपने आगमोद्धारक के लिए जो कार्य किया है वह अनुपम है। आप में धर्म दर्शन ज्ञान के बहु विद रूप देखने को मिलते है। परिवर्तन एवं परिस्थितियों से समस्या होना आपका एक अलग विशिट स्वभाव है।
अहिंसा और मानव धर्म के संदेशवाहक देश में आज स्वंत्र हिंसा का साम्राज्य है यह हिंसा किसी जिव की नहीं वरन उन मूल्यों की है, जो हमारी संस्कर्ति के प्रबल है। सांस्कृतिक मूल्यों का आज जिस तरह से हास् हो रहा है, वह अत्यंत दुखदायी है। मानवीय संबंधों में जिस तीव्रता के साथ बेचारगी का बोलबाला बढ़ रहा है । उससे आत्मीयता धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है। संवेदना शुन्य मानव आज जिस मुकाम पर खड़ा है, वह एकदम हताश, निराश और विवश है, ऐसे नैराश्य के वातावरण में गनीश्री विश्वरत्नसागरजी अपनी वाणी के द्वारा जिण अमृत वचनों की वर्षा जगह-जगह पर कर रहे है, वह असंतृप्त मानवो के लिए संजीवनी की तरह जीवनदायनी का काम कर रही है। इसे अर्थवान बनाने के लिए किन-किन चीजो की आवयश्यकता होती है? इतिहास के द्वारा स्मरण पाना कैसे संभव है? आदि जीवन के उन शाश्वत सूत्रों का सन्देश हमें गणी श्री विश्वरत्नसागरजी की वाणी में देखने को मिलता है। व्यक्ति को आज इस बात का बोध होना चाहिए की सबसे बड़ा मानव धर्म है। इसकी रक्षा के लिए व्यक्ति को सतत सचेत रहना चाहिए। गणी श्री विश्वरत्नसागरजी ने मानव धर्म और महावीर के प्रमुख सिद्धान्त अहिंसा को जन-जन तक पहुचने का जो स्तुल्य कार्य किया है। उसे कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता है
वात्सल्य दिवाकर तप तेजस्वी मालवा भूषण आचार्य देवेश गुरुदेव श्री नवरत्नसागर सूरीश्वर म. सा. के सुशिष्य जैन धर्म की जिनवाणी, शताधिक युवा भव्यतामओ को जिनवाणी का अनुगामी बनाकर धर्म से जोड़ने वाले श्रमण संस्कृति के उन्नायक गणिवर्य श्री विश्वरत्नसागरजी म. सा. को आगमोद्धारक मासिक के हजारो हजार पाठको एवं नवरत्न परिवार, इंदौर की और से पन्यास पद पर आरूढ़ होने पर आत्मीय शुभकामनाये एवं हमारी इच्छा है की आप शीघ्रः ही ३६ गुण भंडारी आचार्य पद को भी सुशोभित करे, यही मंगल भावना।।