आचार्य श्री नवरत्नसागर सूरीश्वर जी म. सा. का जीवन परिचय
एक ओलिया पुरुष आचार्य श्री नवरत्न सुरजी म. सा.
पूज्य आचार्य भगवंत ने निर्मल, अखंड, और अप्रमत सयम की आराधना कर स्वयं को धर्मसेवा, संघसेवा, हितार्थ समर्पित कर जैन जगत को कृतार्थ किया है। आप हमारे लिए शुभ वृति और प्रवति का मंगलमय मार्ग दर्शन करने वाले एक ऐसे नवरत्न है जिसकी आभा में आज हम प्रकाशवान हो रहे है।
हम नहीं जानते की मालवा का पुण्य कैसे जाग्रत हो गया की हमें परोपकारी, भविष्य दर्शी, आचार्य भगवंत मालवधर्क श्री चंद्रसागर सूरीश्वर महाराज जैसा संरक्षक मिल गया और जाते जाते वे हमें धैर्यशील, समतावान मालवा भूषण आचार्य भगवंत श्री नवरत्नसागर सुरजी जैसा नवरत्न सोप गये।
जीवन दर्शन
आचार्य श्री नवरत्न सागर जी मा. सा. का जीवन परिचय
संसारी नाम -
रतन पोरवाल
माता जी का नाम -
मणि बेन
पिता जी का नाम -
लालचंद जी
जन्म दिवस -
अगहन वादी ३ , विक्रम संवत १९९९
जन्म स्थान -
राजग्रही (राजगढ़ ) (म.प्र. ),
दीक्षा गुरु -
मालवदेश उद्धारक आचार्य श्री चन्द्र सागर जी मा. सा.
दीक्षा स्थल -
राजग्रही (राजगढ़ ) (म.प्र. ),
गच्छ -
तपागच्छ
समुदाय - आचार्य श्री सगरानन्द सूरी जी प्रतिष्ठा - शंखेश्वर आगम मंदिर सहित लगभग १२५ मंदिरों की प्रतिष्ठा करवाई अंजनशलाका - भक्ताम्बर महातीर्थ, धार (म.प्र. ), शंखेश्वर आगम मंदिर आदि। नूतन जिनालय - भक्ताम्बर महातीर्थ, धार (म.प्र. ), शंखेश्वर आगम मंदिर। जीर्णोद्धार - भोपावर महातीर्थ, गिनकार गिरी तीर्थ, मंदसौर, अरनोद, नीमच, बदनावर, सीहोर, रतनबाग इंदौर श्री सिद्धचक्र मंदिर उज्जैन आदि जगह के जिलो में तपावली - गुरुदेव के तप एवं जप को शब्दों के सागर में बांधा नहीं जा सकता। पुस्तकें - नवरत्न मंजूषा मुखपत्र (मैगजीन) - आगमोद्धारक, नित्य संस्कृति, जय नवरत्न सन्देश। विशेषताएँ - शब्दों मा अमृत बरसे प्रेम ना है भंडार। एवा गुरु नवरत्न वन्दियें सुख शांति दातार।।
प्रेरणादायक उद्धरण:
1. सत्य अहिंसा जैन धर्म का प्राण हैं।
२. सम्यक्तव पूर्वक संयम धारण करना होगा
३. सम्यग्दर्शन और चारित्र एक सिक्के के दो पहलू हैं
४. मिथ्यात्वपूर्वक सभी अनुष्ठान संसारवर्धक होते हैं
५. सम्यत्वरहित संयम भी नरकादिक दुर्गति से रक्षण करता है .
संयम जीवन की यात्रा
जिन शासन के प्रति अनुराग, शासन की भक्तिभाव से प्रभावना करते हुए मुनि श्री नवरत्नसागर जी म. सा. विक्रम संवत २०३६ की कार्तिक सुदी-५ को अहमदाबाद में गणी पद पर प्रतिष्ठित किये गये यहाँ से संयम जीवन की यात्रा प्रगतिवान बनने के साथ उत्तरदायित्व के अहसास करने वाली भी बानी जिसे आपने बखूबी निभाया। जग प्रसिद्ध हजारे हजूर दादा श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु के प्रसिद्ध तीर्थ श्री शंखेश्वरजी में आप श्री की काबिलियत को देखते हुए चतुर्विध संघ के समक्ष विक्रम संवत २०३९ में वैशाख सूद-३ को पन्यास पद पर आरूढ़ किये गए। पूना के चातुर्मास के समय संयम यात्रा का एक कदम और आगे बड़ा और आपको विक्रम सावंत २०४७ की वैशाख सूद-१० को पूना (महाराष्ट्र) में उपाध्याय पद पर विराजमान किया गया।
पूज्य गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री दर्शनसागरजी का प्रबल आग्रह था की मालवा भूषण उपाध्यायजी मुम्बई आवे, पर आपने पूज्य गच्छाधिपति को बहुत ही विनम्रतापूर्वक यहाँ सन्देश पहुचाया की साहेबजी में मुम्बई नहीं आऊँगा पर गच्छाधिपतिजी के आदेश पर आपश्री ने मुम्बई की और विहार किया उस समय गच्छाधिपति का स्वास्थ भी ठीक नहीं था आपश्री के आग्रह पर मार्गशीर्ष सुदी-६ दिनक ३०-११-९२ को एक भव्य महोत्सव में आपश्री को आचार्य पद प्रदान किय गया।
समता के सागर
पूज्य आचार्य भगवंत ने निर्मल, अखंड, और अप्रमत सयम की आराधना कर स्वयं को धर्मसेवा, संघसेव, हितार्थ समर्पित कर जैन जगत को को कृतार्थ किया है। आप हमारे लिए शुभ वृति और प्रवति का मंगलमय मार्ग दर्शन करने वाले एक ऐसे नवरत्न है जिसकी आभा में आज हम प्रकाशवान हो रहे है।
आपके सद्गुणों में सबसे अधिक शोभयमान गन अगर कोई है तो वह है आपकी समता- सहजता। आपकी सतत जाग्रत सायं साधना के आल्हादकारी दर्शन कर अनेक लोग नतमस्तक हो जाते है। सत्यता से भरे धीर, घम्भीर जीवन को देखकर तीर्थकर भगवन के द्वारा उपदेशित समस्या समणो होइ समता से ही श्रमण होता है और उवमसर खु समण्डा उपशम ही श्रमणत्व का सर है। श्रमण जीवन की खूबियों और महिमा का वर्णन करने वाली यहाँ उक्तियां आचार्य श्री के जीवन में चरितार्थ होती हुई हमें देखने को मिलती है। विचार, वाणी और आचरण रूप मे प्रकट होते समर्ग जीवन व्यवहार को अहिंसा, सयम, तप, जप और सत्य के प्रकाश को आलोकित करते ऐसे समताधारी संत वर्तमान जैन जगत के श्रमण समुदाय में चारो और देखने में काम ही दृष्टिगोचर होते है